आजकल दिल की बीमारियां तेजी से फैल
रही हैं। 25-30 साल की उम्र में भी दिल की धड़कनों के दगा देने के मामले सामने
आ रहे हैं। परेशानी की बात यह है कि इस उम्र में ध्यान न देने से बीमारी गंभीर हो जाती
है और कई बार लाइलाज स्तर पर पहुंच जाती है। हम बता रहे हैं, दिल की आम बीमारियों, उन्हें पहचानने
के तरीकों और जांच के बारे में, जिससे वक्त रहते समस्या पर काबू पाया जा सके।
दिल की हर तरह की समस्या के लिए अलग
इलाज की जरूरत होती है, मगर इनके लक्षण कई बार एक जैसे हो सकते हैं। ऐसे में यह जरूरी
है कि आप समय-समय पर रुटीन जांच कराते रहें और कोई समस्या होने पर डॉक्टर से सलाह लें।
दिल के अलग-अलग रोगों के लक्षण
कोरोनरी आर्टरी डिजीज
इसका सबसे आम लक्षण है एंजाइना या
छाती में दर्द। एंजाइना को छाती में भारीपन, असामान्यता, दबाव, दर्द, जलन, ऐंठन या दर्द
के अहसास के रूप में पहचाना जा सकता है। कई बार इसे अपच या हार्टबर्न समझने की गलती
भी हो जाती है। एंजाइना कंधे, बाहों, गर्दन, गला, जबड़े या पीठ में भी महसूस की जा सकती है। बीमारी के दूसरे लक्षण
ये हो सकते हैं :
- छोटी-छोटी सांस आना।
- पल्पिटेशन।
- धड़कनों का तेज होना।
- कमजोरी या चक्कर आना।
- उल्टी आने का अहसास होना।
- पसीना आना।
हार्ट अटैक
- सीने, बाहों, कुहनी या छाती की हड्डियों में असहजता, दबाव, भारीपन या दर्द
का अहसास।
- असहजता का पीठ,
जबड़े, गले और बाहों तक फैलना।
- पेट भरा होने,
अपच या हार्टबर्न का अहसास होना।
- पसीना, उल्टी, मितली या कमजोरी महसूस होना।
- बहुत ज्यादा कमजोरी, घबराहट या सांस का रुक-रुककर आना।
- दिल की धड़कनों का तेज या अनियमित होना।
हार्ट अटैक के दौरान आमतौर पर लक्षण
आधे घंटे तक या इससे ज्यादा समय तक रहते हैं और आराम करने या दवा खाने से आराम नहीं
मिलता। लक्षणों की शुरुआत मामूली दर्द से होकर गंभीर दर्द तक पहुंच सकती है। कुछ लोगों
में हार्ट अटैक का कोई लक्षण सामने नहीं आता, जिसे हम साइलेंट मायोकार्डियल इन्फ्रै क्शन
यानी एमआई कहते हैं। ऐसा आमतौर पर उन मरीजों में होता है जो डायबीटीज से पीडि़त होते
हैं।
जिन लोगों को हार्ट अटैक की आशंका
है, वे बिल्कुल देर न करें। फौरन आपातकालीन मदद लें, क्योंकि हार्ट
अटैक में फौरन इलाज बेहद जरूरी है। इलाज जितनी जल्दी होगा, मरीज के पूरी
तरह ठीक होने की संभावना उतनी ही ज्यादा होगी।
एरिदमिया
जब भी एरिदमिया यानी दिल की असामान्य
धड़कनों के लक्षण सामने आते हैं, इन दिक्कतों का अहसास हो सकता है:
- पल्पिटेशन (दिल की धड़कनों के चूकने का अहसास या तेज रफ्तार
से सीने में धड़कन महसूस होना)
- सीने में प्रहार जैसा महसूस होना।
- चक्कर आना या सिर में हल्कापन महसूस होना।
- बेहोशी।
- छोटी-छोटी सांस आना।
- सीने में असहज महसूस होना।
- कमजोरी या थकावट।
हार्ट वाल्व संबंधी बीमारी के लक्षण
- पूरी सांस न आना, खासतौर से तब, जब आप अपनी सामान्य
नियमित दिनचर्या कर रहे हों या बिस्तर पर सीधे लेटे हों।
- कमजोरी या बेहोशी महसूस होना।
- सीने में असहजता महसूस होना। कुछ काम करते वक्त या ठंडी हवा
में बाहर निकलने पर छाती पर दबाव या भारीपन महसूस होना।
- पल्पिटेशन (यह दिल की धड़कनों के तेजी से चलने, अनियमित धड़कन, धड़कनों के चूकने
आदि के रूप में महसूस हो सकता है)।
अगर वाल्व संबंधी बीमारी के चलते
हार्ट फेल होता है तो ये लक्षण दिखाई देते हैं:
-पैर या टखनों में सूजन। पेट में भी सूजन हो सकती है, जिसके चलते पेट
फूला हुआ महसूस हो सकता है।
-अचानक वजन बढऩा। एक दिन में दो से तीन पाउंड तक वजन बढ़ सकता
है।
- हार्ट वाल्व संबंधी बीमारी के लक्षण हमेशा स्थिति की गंभीरता
से संबंधित नहीं होते। कई बार ऐसा भी होता है कि कोई लक्षण सामने नहीं आता, जबकि व्यक्ति
को हार्ट वाल्व की गंभीर बीमारी होती है, जिसमें फौरन इलाज की जरूरत होती है। कभी-कभी
ऐसा भी होता है कि लक्षण काफी गंभीर होते हैं, समस्या भी गंभीर होती है, मगर जांच में
वाल्व संबंधी मामूली बीमारी का पता लगता है।
हार्ट फेलियर
- कुछ काम करते वक्त या आराम के दौरान छोटी-छोटी सांसें आना, खासतौर से तब
जब आप बिस्तर पर सीधे लेटे हों।
-खांसी होना जिसमें सफेद बलगम बन रहा हो।
-अचानक वजन बढऩा (एक दिन में दो से तीन पाउंड तक वजन बढ़ सकता
है)।
-टखने, पैरों और पेट में सूजन।
-बेहोशी।
-कमजोरी और चक्कर आना।
-मितली, पल्पिटेशन या छाती में दर्द।
वाल्व संबंधी बीमारियों की तरह ही
हार्ट फेलियर में भी लक्षण इस बात के संकेत नहीं होते हैं कि हार्ट कितना कमजोर है।
हो सकता है कि मरीज में बहुत सारे लक्षण दिख रहे हों, मगर उसका दिल
मामूली तौर पर डैमेज हुआ हो। ऐसा भी हो सकता है कि किसी में हार्ट के गंभीर रूप से
डैमेज होने के बावजूद मामूली लक्षण दिख रहे हों।
दिल संबंधी जन्मजात दोष
ऐसे दोषों का जन्म से पहले, जन्म के फौरन
बाद या बचपन में भी पता लगाया जा सकता है। कई बार बड़े होने तक इसका पता नहीं लग पाता।
यह भी मुमकिन है कि समस्या का कोई लक्षण सामने आए ही नहीं। ऐसे मामलों में कई बार शारीरिक
जांच में दिल की मंद ध्वनि से या ईकेजी या चेस्ट एक्सरे में इसका पता लग जाता है। जिन
वयस्कों में जन्मजात दिल की बीमारी के लक्षण मौजूद होते हैं, उनमें ऐसा देखा
जाता है:
- जल्दी-जल्दी सांस लेना।
- शारीरिक व्यायाम करने की सीमित क्षमता।
- हार्ट फेलियर या वाल्व संबंधी बीमारी के लक्षण दिखना।
- नवजात और बच्चों में जन्मजात हृदय संबंधी दोष।
- साइनोसिस (त्वचा, उंगलियों के नाखूनों और होठों पर हल्का नीला
रंग दिखाई देना)
- तेज सांस लेना और भूख में कमी।
-वजन ठीक ढंग से न बढऩा।
- फेफड़ों में बार-बार इन्फेक्शन होना।
- एक्सरसाइज करने में दिक्कत।
जांच के तरीके
कॉलेस्ट्रॉल
किसी भी व्यक्ति के दिल की सेहत के
मामले में कॉलेस्ट्रॉल सबसे अहम भूमिका निभाता है। ब्लड कॉलेस्ट्रॉल का ऊंचा स्तर कोरोनरी
हार्ट डिजीज और स्ट्रोक का सबसे बड़ा कारण है। इसके लिए आपकी बांह से थोड़ा सा ब्लड
लेकर लैब में टेस्ट किया जाता है। अगर डॉक्टर ने भूखे पेट यानी फास्टिंग कॉलेस्ट्रॉल
टेस्ट की सलाह दी है, तो सैंपल देने से पहले 9 से 12 घंटे तक पानी के अलावा कुछ भी खाएं-पिएं
नहीं। किसी भी तरह की दवा खाने से भी बचें। अगर आप खाली पेट जांच नहीं करा रहे हैं, तो रिपोर्ट में
सिर्फ कुल कॉलेस्ट्रॉल और एचडीएल कॉलेस्ट्रॉल की वैल्यू को ही आधार माना जाएगा, क्योंकि आपके
एलडीएल यानी बैड कॉलेस्ट्रॉल और टृाइग्लिसरॉइड के स्तर पर उन चीजों का प्रभाव होगा
जो आपने टेस्ट से पहले खाया-पिया है।
आपकी जांच रिपोर्ट कॉलेस्ट्रॉल को
मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर (एमजी/डीएल) में दिखाएगी। डॉक्टर आपके कॉलेस्ट्रॉल स्तर को
दूसरे रिस्क फैक्टर जैसे पारिवारिक इतिहास, स्मोकिंग और हाई बीपी आदि को भी ध्यान में
रखते हुए आंकेंगे।
अगर आपका कुल कॉलेस्ट्रॉल 200 एमजी/डीएल
या इससे ज्यादा है या एचडीएल कॉलेस्ट्रॉल 40 एमजी/डीएल से कम है, तो आपके इलाज
की लाइन तय करने के लिए आपके एलडीएल यानी बैड कॉलेस्ट्रॉल की जांच भी जरूरी होगी। ऐसे
में अगर आपने पहला टेस्ट फास्टिंग में नहीं कराया है तो डॉक्टर आपको दोबारा कॉलेस्ट्रॉल
टेस्ट कराने की सलाह दे सकते हैं।
हर साल जांच
हर साल कराएं कॉलेस्ट्रॉल की जांच
अगर -
- कुल कॉलेस्ट्रॉल स्तर 200 एमजी/डीएल या इससे ज्यादा हो।
- 45 साल से ज्यादा उम्र के पुरुष या 50 साल से ज्यादा
उम्र की महिला हैं।
- एचडीएल यानी गुड कॉलेस्ट्रॉल 40 एमजी/डीएल से
कम हो।
- दिल की बीमारियों या स्ट्रोक के दूसरे खतरों के दायरे में आते
हों।
ईकेजी
ईकेजी का मतलब है इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम।
इसे ईसीजी भी कहते हैं। ईकेजी कम समय में होने वाला, सुरक्षित, दर्दरहित और कम खर्चीला टेस्ट है, जिसे दिल की समस्या
की आशंका में आमतौर पर किया जाता है। इस टेस्ट में मरीज की छाती, भुजाओं और पैरों
की त्वचा पर छोटे इलेक्ट्रोड पैच लगाकर इनके जरिये दिल की इलेक्ट्रिक एक्टिविटी को
रेकॉर्ड किया जाता है। इसे एक नियमित स्वास्थ्य जांच के तहत किया जा सकता है और दिल
की बीमारी का पता लगाने के लिए भी।
चेस्ट एक्सरे
चेस्ट एक्सरे में दिल, फेफड़ों और छाती
की हड्डियों की तस्वीर एक फिल्म पर उतारने के लिए बेहद मामूली मात्रा में रेडिएशन का
इस्तेमाल किया जाता है। डॉक्टर चेस्ट एक्सरे का इस्तेमाल यह जानने के लिए कर सकते हैं
:
- छाती की संरचना (हड्डियों, हार्ट, फेफड़े) देखने के लिए।
- पेसमेकर, डीफिब्रिलेटर जैसी डिवाइस लगाने से पहले आकलन करने के लिए।
- अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान इलाज के लिए लगाए जाने वाले
ट्यूब (कैथेटर, चेस्ट ट्यूब) मरीज को लगाए जा सकते हैं या नहीं, इस बात का आकलन
करने के लिए।
- फेफड़े और हृदय संबंधी बीमारियों का पता लगाने के लिए।
स्ट्रेस टेस्ट
दिल की बीमारी का पता लगाने के लिए
स्ट्रेस टेस्ट किया जा सकता है। इसे डॉक्टर या प्रशिक्षित तकनीशियन यह पता लगाने के
लिए करते हैं कि हार्ट किस स्तर तक दबाव सह सकता है। आमतौर पर किया जाने वाला स्ट्रेस
टेस्ट है एक्सरसाइज स्ट्रेस टेस्ट।
एक्सरसाइज स्ट्रेस टेस्ट : एक्सरसाइज
इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम, टे्रडमिल टेस्ट, ग्रेडेड एक्सरसाइज टेस्ट या स्ट्रेस ईसीजी
यह पता लगाने के लिए किया जाता है कि मरीज का दिल मेहनत करने पर कैसी प्रतिक्रिया देता
है। इसके लिए ट्रेडमिल पर चलने या साइकल पर पेडल चलाने के लिए कहा जाता है, जिसका कठिनाई
स्तर धीरे-धीरे बढ़ाया जाता है और इस दौरान इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम, हार्ट रेट और
ब्लड प्रेशर की निगरानी की जाती है। कार्डिएक स्ट्रेस टेस्ट के कुछ साइड इफेक्ट भी
हैं। इनमें पल्पिटेशन, सांस का जल्दी-जल्दी आना और छाती में दर्द आदि शामिल हैं। कुछ
बिरले मामलों में कार्डिएक स्टे्रस टेस्ट में दी जाने वाली दवाओं से मामूली रूप से
ब्लड प्रेशर बढऩे जैसे साइड इफेक्ट देखे जाते हैं।
ईकोकार्डियोग्राम
इसमें हार्ट की मांसपेशियों, हार्ट वाल्व की
स्थिति के और दिल की बीमारियों के खतरे के आकलन के लिए अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल किया
जाता है।
कार्डिएक कैथेटराइजेशन
इसे कार्डिएक कैथ या कोरोनरी एंजियोग्राम
भी कहते हैं। यह एक इनवेसिव इमेजिंग प्रक्रिया है जिसके जरिये डॉक्टर हार्ट की फंक्शनिंग
के बारे में पता लगाते हैं। टेस्ट के दौरान, एक लंबी, पलती ट्यूब जिसे कैथेटर कहते हैं, मरीज के हाथ और
पैर की एक रक्त नलिका में डाली जाती है और एक खास एक्सरे मशीन की मदद से हार्ट की स्थिति
का पता लगाया जाता है। इसमें कैथेटर के जरिये एक कंट्रास्ट डाई अंदर ले जाई जाती है
ताकि मरीज के वाल्व, कोरोनरी आर्टरी और हार्ट चैंबर के एक्सरे और विडियो बनाए जा
सकें। इस प्रक्रिया के कुछ खतरे भी हैं:
- ब्लीडिंग
- कैथेटर जिस जगह लगाया जाता है, वहां की आर्टरी
में डैमेज हो सकता है, जिससे बचाव के लिए अतिरिक्त सावधानी की जरूरत होती है।
-डाई या दवाओं से होना वाली अलर्जिक रिएक्शन।
-किडनी डैमेज।
इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी टेस्ट
इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी टेस्ट (ईपी)
स्टडी एक ऐसा टेस्ट है जो दिल की इलेक्ट्रिकल ऐक्टिविटी और इलेक्ट्रिकल पाथवे की जांच
करता है। यह टेस्ट दिल की धड़कनों में आई अनियमितता की वजह पता लगाने में मददगार होता
है। ईपी स्टडी के दौरान डॉक्टर सुरक्षित तरीके से असामान्य हार्ट रिद्म की प्रतिलिपि
बनाता है और इसके बाद मरीज को अलग-अलग तरह की दवाएं दे सकता है। इससे डॉक्टर यह पता
लगाते हैं कि कौन सी दवा बेहतर नियंत्रण में कारगर है या कौन सी प्रक्रिया या डिवाइस
असामान्य धड़कनों के इलाज के लिए बेहतर होगी।
सीटी हार्ट स्कैन
कार्डिएक सीटी एक हार्ट-इमेजिंग टेस्ट
है। इसमें सीटी तकनीक इंट्रावीनस,
कंट्रास्ट यानी डाई के इस्तेमाल के साथ या
बिना इनके इस्तेमाल के दिल की संरचना,
कोरोनरी सर्कुलेशन और रक्त नलिकाओं (इनमें
एओट्रा, पल्मनरी वेंस और आर्टरी शामिल हैं) की स्थिति का पता लगाने के
लिए किया जाता है।
मायोकार्डियल बायॉप्सी
दिल की बीमारियों का पता लगाने के
लिए इस्तेमाल होने वाली इनवेसिव प्रक्रिया है। इसमें एक छोटे कैथेटर का इस्तेमाल होता
है जिसके सिरे पर पकडऩे वाला डिवाइस लगा होता है। इसमें हार्ट की मसल टिश्यू का छोटा
हिस्सा लिया जाता है और उसे अनालिसिस के लिए लैब में भेजा जाता है।
हार्ट एमआरआई
डॉक्टर मरीज के चेस्ट, हार्ट, फेफड़ों, मुख्य नलिकाओं
और हार्ट की बाहरी लाइनिंग के ढांचे और फंक्शन के आकलन के लिए एमआरआई का इस्तेमाल करते
हैं। इसका इस्तेमाल कोरोनरी आर्टरी डिजीज, पेरिकार्डियल डिजीज, कार्डिएक ट्यूमर, हार्ट वाल्व डिजीज, हार्ट मसल डिजीज
जिसे कार्डियोमायोपैथी कहते हैं और जन्मजात दिल की बीमारी की मौजूदगी का पता लगाने
के लिए भी किया जाता है। कार्डिएक एमआरआई में इस्तेमाल होने वाले मैग्नेटिक फील्ड और
रेडियोधर्मी तरंगों का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता।
पेरीकार्डियोसेंटेसिस
इसे पेरीकार्डियल टैप भी कहते हैं।
यह एक इनवेसिव प्रक्रिया है जिसमें एक निडल और कैथेटर के जरिये हार्ट के आस-पास जमा
तरल को हटाया जाता है। इस तरल की जांचकर हार्ट में इन्फेक्शन जैसे पेरीकार्डिटिस, कंजेस्टिव हार्ट
फेलियर और हार्ट अटैक का पता लगाया जाता है।
जांच और उन पर आने वाला खर्च
ईकेजी 150-200 रुपये
ब्लड टेस्ट 1200 रुपये
न्यूक्लियर स्कैन 10,000 रुपये
कोरोनरी एंजियोग्राफी 12000 रुपये
और ज्यादा जानकारी
ऐप
Coronary Heart
Disease
ओएस : एंड्रॉयड
कीमत : फ्री
किसी इंसान को कोरोनरी हार्ट डिजीज
होने का कितना खतरा हो सकता है, इस ऐप की मदद से यह जाना जा सकता है। फ्री ऐप है।
Instant Heart Rate
ओएस : एंड्रॉयड
कीमत : फ्री
हार्ट रेट का आकलन करने और उस पर
नजर रखने के लिए यह बहुत अच्छा ऐप है यानी स्मार्टफोन की मदद से ही आप अपने दिल की
धड़कनों पर नजर रख सकते हैं।
वेबसाइट
दिल की बीमारियों के लिए काम आने
वाले टेस्टों के बारे में जानकारी चाहिए तो इन वेबसाइट्स पर जा सकते हैं।
tinyurl.com/ljt5pra
tinyurl.com/lw7puc9
यूट्यूब विडियो
स्ट्रेस टेस्ट क्या होता है? ईकेजी कैसे किया
जाता है? ऐसी ही बातों को आप इस विडियो के जरिये जान सकते हैं:
http://www.youtube.com/watch?v=yqA2L6kLLmg
10 बातें जो दिल को रखेंगी स्वस्थ
1. सेहतमंद डाइट
दिल की सेहत बनाए रखने के लिए अपने
खानपान का खास खयाल रखें। आप क्या खा रहे हैं और कब खा रहे हैं, दोनों ही बातें
महत्वपूर्ण हैं। सब्जियां, फल, साबुत अनाज और बहुत थोड़ी मात्रा में तेल, ये ऐसी चीजें
हें जिन्हें रोजाना के खानपान का हिस्सा बनाने से दिल की सेहत अच्छी बनी रह सकती है।
2. वजन काबू में
मोटापा तमाम तरह की दिल की बीमारियों, ब्लडप्रेशर और
डायबीटीज का खतरा बढ़ाता है इसलिए वजन को काबू में रखना बेहद जरूरी है। अलग-अलग तरह
की एक्सरसाइज और खानपान का ध्यान रखकर मोटापे को काबू में रखा जा सकता है। बॉडी मास
इंडेक्स 20 से 25 के बीच रखना जरूरी है।
3. योग और एक्सरसाइज
रोजाना 30 मिनट की ऐरोबिक
एक्सरसाइज दिल की सेहत के लिए अच्छी मानी जाती है। रोजाना किया गया योग और मेडिटेशन
तनाव को कम करने में सहायक है और अगर तनाव कम होगा, तो दिल का सामान्य स्वास्थ्य ठीक बना रहेगा।
एक्सरसाइज, योग या मेडिटेशन सभी नहीं कर पाएं तो किसी एक का नियमित अभ्यास
जरूर करें।
4. सक्रिय रहें
अगर योग और एक्सरसाइज के लिए आप नियमित
रूप से वक्त नहीं निकाल पा रहे हैं तो खुद को शारीरिक रूप से सक्रिय रखें। लिफ्ट की
बजाय सीढिय़ों का प्रयोग करें, गाड़ी दूर पार्क करके ऑफिस तक पैदल आएं। खुद को सक्रिय रखने
के लिए ऐसे ही छोटे-छोटे कई दूसरे काम किए जा सकते हैं।
5. तनाव को बाय
तनाव तमाम बीमारियों की जड़ है। दिल
की बीमारियां भी इनमें शामिल हैं। जिंदगी में कई बार ऐसे पल आते हैं, जब जबर्दस्त तनाव
होता है, लेकिन इन पलों को ज्यादा लंबे समय तक न खिंचने दें। तनाव से
निजात पाने के लिए दोस्तों से मिलें,
सामाजिक बनें, स्थितियों को
स्वीकारें, काम से छोटा ब्रेक लें।
6. स्मोकिंग और अल्कोहल छोड़ें
जरूरत से ज्यादा शराब पीने से ट्राइग्लिसरॉइड्स
बढ़ सकते हैं। ट्राइग्लिसरॉइड्स खून में फैट की मात्रा होती है। ज्यादा अल्कोहल मोटापा, हार्ट फेलियर
और हाई बीपी की वजह भी बन सकती है। इसी तरह धूम्रपान भी दिल के रोगों के लिए जिम्मेवार
है। अल्कोहल और सिगरेट से परहेज करें और लेनी ही है तो बेहद कम मात्रा में लें।
7. अच्छी नींद लें
नींद की कमी से ब्लडप्रेशर और कॉलेस्ट्रॉल
पर असर पड़ता है। नींद की कमी से तनाव में भी बढ़ोतरी होती है, जो कि दिल के
रोगों के होने का अपने आप में कारण है। हालांकि नींद की जरूरत हर इंसान की अलग अलग
हो सकती है, फिर भी मोटे तौर पर 7 से 8 घंटे की अच्छी नींद लेना जरूरी है।
8. खुलकर हंसें,
मस्त रहें
जो लोग खुलकर ठहाके लगाकर हंसते हैं, उन्हें दिल की
बीमारियां कम होती है। ज्यादा हंसने वालों का रक्त प्रवाह अच्छा बना रहता है और आर्टरीज
को कठोर होने से रोकता है। दिल का स्वास्थ्य बेहतर बनाए रखने के लिए ठहाकेदार हंसी
और हमेशा खुश रहना एक अचूक नुस्खा माना जाता है।
9. फैमिली हिस्ट्री का ध्यान
अगर आपके परिवार में किसी को दिल
की बीमारी रही है तो आपको ज्यादा सचेत रहने की जरूरत है। आप अपने जींस को तो नहीं बदल
सकते, लेकिन थोड़ा अलर्ट रहकर बीमारी को टाल जरूर सकते हैं। अपने डॉक्टर
को फैमिली हिस्ट्री के बारे में बताएं और उनकी सलाह के मुताबिक लाइफस्टाइल में बदलाव
करें।
10. डॉक्टर के पास जाएं
कई बार लोग सीने में दर्द, चक्कर आना या
ऐसी ही दूसरी स्थितियों में लोग आमतौर पर डॉक्टर के पास नहीं जाते। कई बार लंबे समय
तक यह पता ही नहीं चल पाता कि उन्हें दिल की बीमारी हो रही है। ऐसे में बेहतर यह है
कि ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर और कॉलेस्ट्रॉल लेवल पर नजर रखी जाए।
साभार
नीतू
सिंह
नवभारत टाइम्स | Aug 18, 2013, 10.34AM IST
http://navbharattimes.indiatimes.com/thoughts-platform/sunday-nbt/just-life/understand-its-status-and-care-for-your-heart/articleshow/21891783.cms
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