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सूत्र 50 से अधिक उम्र में फिट रहने के

कुछ ऐसे मेडिकल टेस्ट हैं जिन्हें 50 साल से ज्यादा उम्र के शख्स को रेग्युलर कराते रहना चाहिए। तो अपने पिता को आज ही डॉक्टर के पास लेकर जाएं और उनके ये तमाम टेस्ट कराएं। पूरी जानकारी दे रही हैं नीतू सिंह:

1. ब्लड प्रेशर स्क्रीनिंग
ज्यादातर भारतीय अपना ब्लड प्रेशर तभी टेस्ट कराते हैं, जब उनकी तबीयत खराब होती है। रेग्युलर जांच के अभाव में बहुत सारे लोगों का ब्लड प्रेशर बढ़कर हाइपरटेंशन की कैटिगरी में पहुंच जाता है और उन्हें इसकी खबर तक नहीं होती। नतीजा हार्ट अटैक या ब्रेन स्ट्रोक जैसी जानलेवा स्थिति के रूप में सामने आता है। अगर बीपी सामान्य है तो दिल, दिल की मुख्य नसें, दिमाग, आंखें और किडनी सब दुरुस्त रहेंगे।

कब
40 साल से ज्यादा उम्र के शख्स को साल में कम-से-कम एक बार अपने बीपी की जांच जरूर करानी चाहिए।

सामान्य
अगर ऊपर का बीपी 130 से कम हो और नीचे की रीडिंग 85 से कम हो तो चिंता की कोई बात नहीं है।

2. कॉलेस्ट्रॉल स्क्रीनिंग
हार्ट अटैक और स्ट्रोक की सबसे बड़ी वजहों में से एक कॉलेस्ट्रॉल बढ़ा होना है, लेकिन अच्छी बात यह है कि कॉलेस्ट्रॉल को आप अपने खान-पान में बदलाव करके और कुछ दवाओं की मदद से नियंत्रण में ला सकते हैं।

टेस्ट
कॉलेस्ट्रॉल की जांच के लिए लिपिड प्रोफाइल टेस्ट कराएं। इसमें एचडीएल यानी अच्छा कॉलेस्ट्रॉल और एलडीएल यानी बुरे कॉलेस्ट्रॉल का स्तर पता लग जाता है।

कब
अगर टेस्ट कराने पर आपके पिता का कॉलेस्ट्रॉल लेवल नॉर्मल आता है तो हर एक साल में एक बार जांच जरूर करा लें। अगर कॉलेस्ट्रॉल लेवल बॉर्डर लाइन पर है और दवा नहीं खा रहे हैं तो तीन महीने से लेकर एक साल के अंदर-अंदर जांच करा लेनी चाहिए। और कॉलेस्ट्रॉल लेवल अगर ज्यादा रिस्क कैटिगरी में आता है तो हर तीन महीने पर जांच कराएं।

3. यूरॉलजिकल टेस्ट
50 साल से ज्यादा उम्र के पुरुषों को यूरॉलजिकल समस्याएं हो सकती हैं, लेकिन इससे घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि आजकल इससे जुड़ी तकरीबन सभी समस्याओं का सफल इलाज मौजूद है। डॉक्टरों के मुताबिक, इन दिक्कतों को पहचानने के लिए कुछ लक्षणों पर ध्यान देना जरूरी है, जैसे बगलों और पेट के निचले हिस्से में दर्द, पेशाब में खून आना या इरेक्टाइल डिसफंक्शन।

टेस्ट
रुटीन फिजिकल एग्जाम में डिजिटल रेक्टल एग्जाम (डीआरई) और प्रोस्टेट स्पेसिफिक ऐंटिजेन (पीएसए) शामिल किया जाता है। अगर डीआरई या पीएसए टेस्ट में कोई समस्या है तो कुछ अन्य टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है। इसमें यूरिन एनालिसिस, ट्रांसरेक्टल अल्ट्रासाउंड या प्रोस्टेट बायॉप्सी, यूरोडायनमिक टेस्ट और एब्डॉमिनल अल्ट्रासाउंड हो सकता है।

कब
50 साल से ज्यादा उम्र के पुरुषों को साल में एक बार यह टेस्ट करा लेना चाहिए।

4. प्रोस्टेट कैंसर स्क्रीनिंग
बुजुर्ग पुरुषों में कैंसर के सबसे खतरनाक मामलों में प्रोस्टेट कैंसर होता है।

टेस्ट
रेक्टल यानी गुदा संबंधी जांच कराएं। इसके तहत डॉक्टर प्रोस्टेट की असामान्यता जैसे सूजन या कठोरता की जांच करता है। स्क्रीनिंग के दौरान एक पीएसए ब्लड टेस्ट भी करा सकते हैं। इसमें किसी भी तरह के बदलाव का लक्षण काफी पहले पता लग जाता है।

कब
40 साल से ज्यादा उम्र के पुरुषों को हर साल यह टेस्ट कराना चाहिए।

5. कोलोरेक्टल कैंसर स्क्रीनिंग
पुरुषों में मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण है कोलोरेक्टल कैंसर। वक्त पर पता लग जाए तो इसके 90% मामलों को नियंत्रित किया जा सकता है।

टेस्ट
पिता की उम्र 50 साल से ज्यादा है तो उनकी कोलोरेक्टल कैंसर स्क्रीनिंग जरूर कराएं। इसमें ये टेस्ट शामिल हो सकते हैं:

- स्टूल टेस्ट: मल में खून की जांच के लिए होता है।
- स्टूल अकल्ट ब्लड टेस्ट के साथ फ्लेक्सिबल सिग्मॉइडोस्कोपी: इसमें मलाशय के निचले हिस्से की अंदर से जांच होती है।
- कोलोनोस्कोपी: पूरे मलाशय की जांच होती है इसमें।

कब
- स्टूल टेस्ट साल में एक बार कराएं।
- फ्लेक्सिबल सिग्मॉइडोस्कोपी पांच साल में एक बार कराएं।
- कोलोनोस्कोपी 10 साल में एक बार करा लेनी चाहिए। अगर किसी को कोलोन कैंसर का खतरा है, मसलन कोलोरेक्टल कैंसर का कोई पारिवारिक इतिहास है तो हर साल कोलोनोस्कोपी कराने की जरूरत है।

6. आंखों की जांच
आंखों की बीमारियां जैसे मस्क्युलर डीजनरेशन, मोतियाबिंद, ग्लुकोमा आदि उम्र बढ़ने के साथ आने वाली आम समस्याएं हैं। इसके लिए आंखों का रेग्युलर चेकअप कराते रहना चाहिए।

टेस्ट कब
अगर पिता की उम्र 60 साल से कम है तो हर दो साल में आंखों की पूरी जांच कराएं। उनकी उम्र 60 साल से ज्यादा होने पर हर साल आंखों की पूरी जांच कराएं। अगर उन्हें पहले कोई समस्या है या वह खतरे के दायरे में आते हैं तो हर छह महीने में उनकी आंखों की पूरी जांच कराएं।

7. कानों की जांच
60 साल से ज्यादा उम्र वाले तकरीबन 30% लोगों को सुनने की समस्या होती है। इनमें से कुछ लोगों की दिक्कत इलाज से ठीक हो सकती है।

टेस्ट
पिता की उम्र 60 साल से ज्यादा है तो उनका साल में एक बार हियरिंग टेस्ट जरूर कराएं।

8. डेंटल एग्जाम
टेस्ट
मसूड़ों की बीमारियां संपूर्ण स्वास्थ्य का आइना हो सकती हैं। ऐसे में अपने पिता के दांतों, मसूड़े, मुंह और गले की नियमित जांच कराएं।

कब
हर साल होनी चाहिए। इसके साथ ही साल में एक बार दांतों की सफाई भी कराएं।

9. वजन पर काबू
जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, हमारे शरीर में मसल्स की जगह फैट लेने लगता है, क्योंकि शरीर का मेटाबॉलिजम धीमा होने लगता है। यह फैट धीरे-धीरे कमर तक पहुंचता है, क्योंकि आप पहले की तरह कैलरी बर्न नहीं कर पाते। अपने पिता को इस बात के लिए प्रोत्साहित करें कि वह रेग्युलर एक्सरसाइज करते रहें और पौष्टिक खान-पान लें, जिससे उनका वजन कंट्रोल में रहे।

10. हड्डियों का टेस्ट
ज्यादातर पुरुष हड्डियों की समस्या पर बात तभी करते हैं, जब उन्हें कोई तकलीफ या फ्रैक्चर आदि हो जाता है। सचाई यह है कि उम्र बढ़ने के साथ हमारी हड्डियां भी कमजोर होने लगती हैं। ऐसे में पौष्टिकता की कमी, शारीरिक व्यायाम का अभाव, सेक्स हॉर्मोन में कमी और कुछ दवाओं के चलते समस्या तेजी से बढ़ने लगती है। हड्डियों की समस्या से बचने के लिए अपने डॉक्टर से अपने पिता के बोन स्कैन के बारे में जानें और पूछें कि हड्डियों को सही रखने के लिए आहार में क्या लिया जा सकता है।

टेस्ट
डेक्सा स्कैन: यह एक तरह का एक्स-रे होता है जो दर्द रहित है और 10 से 15 मिनट में हो जाता है। इससे बोन मास डेंसिटी का पता लगता है।

सीटी स्कैन: इससे ऑस्टियोपेनिया, ऑस्टियोपोरोसिस और ऑस्टियोनेक्रोसिस का पता लग जाता है। यह भी एक दर्द रहित प्रक्रिया है, जिसका रिजल्ट एक्सरे से बेहतर होता है। एक स्कैन में 5 से 30 मिनट का समय लग सकता है।

एमआरआई: ऑस्टियोपेनिया, ऑस्टियोपोरोसिस और ऑस्टियोनेक्रोसिस का पता लगता है। इसमें मैग्नेट और रेडियोधमीर् किरणों के इस्तेमाल से हड्डी की डीटेल पिक्चर बनती है। इसमें 45 मिनट का समय लगता है।

कब: डेक्सा स्कैन और सीटी स्कैन करवा लें। अगर कोई दिक्कत है तो डॉक्टर की सलाह के हिसाब से चलें। सामान्य है तो हर साल टेस्ट दोहराने की जरूरत नहीं है।

दूसरे रोगों का पता भी देती हैं आंखें
शरीर में आंखें एक ऐसा हिस्सा हैं जिनके जरिये आर्टरी और वेंस को सीधे देखा जा सकता है। इसके लिए किसी सर्जरी या कैमरे की जरूरत नहीं होती। यही वजह है कि आंखों का डॉक्टर डायबीटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी गंभीर समस्याओं का सबसे पहले और आसानी से पता लगा लेता है। 65% मामलों में आंखों के डॉक्टर मरीज में हाई कॉलेस्ट्रॉल के लक्षण को दूसरे किसी हेल्थकेयर एक्सपर्ट की तुलना में पहले पता लगा लेते हैं। ऐसे में रेटिना की नसों में पीले-पीले धब्बे नजर आते हैं। अगर आंखों की जांच नियमित रूप से कराई जाए तो कई गंभीर बीमारियों का वक्त रहते पता लगाया जा सकता है।

लक्षण: आंखों की नसें सिल्वर या कॉपर कलर की होना
खतरा: हाई ब्लड प्रेशर

हाई ब्लड प्रेशर के 20% से भी ज्यादा मरीजों को इसकी जानकारी नहीं होती कि हाइपरटेंशन का पता आंखों के जरिये लगाया जा सकता है। ऐसा होने पर रेटिना की आर्टरी का रंग सिल्वर या कॉपर का हो जाता है जिसे हम कॉपर वायरिंग कहते हैं। अगर इसका इलाज वक्त पर न हो तो यह स्थिति रेटिना के ब्लड वेसल्स से होते हुए पूरे शरीर की रक्त नलिकाओं को सख्त बना सकती है जिससे हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।

लक्षण: आंखों की अंदरूनी परत में तिल
खतरा: मेलानोमा

सूरज की तेज रोशनी आपकी त्वचा को डैमेज करने के साथ-साथ कुछ और भी नुकसान पहुंचा सकती है जिसमें आई बॉल के भीतर कैंसर का खतरा भी शामिल है। यह रेटिना में एक तिल या पिगमेंटेशन की सतह की तरह दिख सकता है। आंखों के मेलानोमा का शुरुआत में पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है। इसके अधिकतर मामलों में कोई लक्षण दिखाई नहीं देता और यह चमत्कारिक रूप से जल्द ही आस-पास के टिशू तक फैल जाता है।

लक्षण: ब्लड वेसल्स में लीकेज
खतरा: डायबीटीज

लंबे समय तक ब्लड शुगर लेवल ज्यादा होने पर रेटिना की ब्लड वेसल्स डैमेज हो सकती हैं। ऐसे में वे कमजोर हो जाती हैं। डॉक्टर को रिसाव या खराब रक्त नलिकाओं को रिप्लेस करने के लिए अंकुरित हो रही असामान्य नलिकाओं का पता लग सकता है। वैसे भी डायबीटीज आंखों की समस्या के लिए सामान्य तौर पर भी सबसे ज्यादा जिम्मेदार है और गंभीर मामलों में यह अंधेपन की स्थिति भी ला सकती है।

लक्षण: जलन व सूजन
खतरा: ऑटोइम्यून डिजीज

ऑटोइम्यून बीमारियां शरीर के स्वस्थ टिशू पर हमले के लिए जिम्मेदार होती हैं जिनमें आंखों के अंदरूनी हिस्से भी शामिल होते हैं। इसके चलते जलन व सूजन हो सकती है। यह प्रक्रिया कुछ इस तरह होती है, मसलन आंखों के आस-पास खून जैसी लाली और आंखों की 30 से 50% रक्त नलिकाओं में सूजन, लाली, खुजलाहट, आंखों से पानी आने जैसे लक्षण। अलग-अलग अंगों मं काम करना बंद कर देती हैं और आइरिस मेन है जो दिखता है।

लक्षण: अंदरूनी छाले
खतरा: सीएसआर

इसमें आपकी आंखें बाहर से ठीक लगती हैं मगर आंख की पुतली के भीतर छाले हो सकते हैं। इस स्थिति को सेंट्रल सेरस रेटिनोपैथी यानी सीएसआर कहते हैं। ऐसा आमतौर पर बहुत ज्यादा दिमागी और मानसिक तनाव के चलते होता है, क्योंकि इस स्थिति में रेटिना में छाले बनाने वाला फ्लुइड काफी ज्यादा मात्रा में लीक होने लगता है। इसके सबसे आम लक्षणों में मरीज को धुंधला दिखाई देना और किसी एक पॉइंट पर फोकस करते समय लहरदार लाइनें दिखाई देने जैसे लक्षण आते हैं। ज्यादातर मामलों में तनाव का स्तर कम कर सीएसआर को मैनेज किया जा सकता है। जिन मामलों में ऐसा नहीं हो पाता, उनमें लेजर ट्रीटमेंट देते हैं।

एक्सर्पट्स पैनल
डॉ. राज आनंद, आई स्पैशलिस्ट, वासन आई केयर
डॉ. विनीत मल्होत्रा, यूरॉलजिस्ट, नोवा स्पैशियलिटी सर्जरी
डॉ. प्रवीण बंसल, मेडिकल ऑन्कॉलजिस्ट, एशियन इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस
डॉ. विवेक लोगानी, जॉइंट रीकंस्ट्रक्शन एक्सपर्ट, फोर्टिस हॉस्पिटल
साभार
नवभारत टाइम्स | Jun 16, 2013, 10.48AM IST
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/20613817.cms

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