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सूत्र ऑस्टियोपोरोसिस की पहचान और बचाव के

ऑस्टियोपोरोसिस यानी हड्डियों का कमजोर होना ऐसी समस्या है, जिससे उम्रदराज लोगों को अक्सर दोचार होना पड़ जाता है। 50 साल की उम्र के बाद हर तीन में एक महिला को यह समस्या होती है।

पैनल
डॉ. पी. के. दवे, चेयरमैन, ऑर्थोपिडिक डिपार्टमेंट, रॉकलैंड ह़ॉस्पिटल, नई दिल्ली
डॉ. एच. एस. छाबड़ा, मेडिकल डायरेक्टर, इंडियन स्पाइनल इंजरीज सेंटर, नई दिल्ली
डॉ. हर्षवर्धन हेगड़े, नोवा ऑर्थोपिडिक एंड स्पाइन हॉस्पिटल, नई दिल्ली
डॉ. राजीव के. शर्मा, सीनियर ऑर्थोपिडिक एंड जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन, अपोलो ह़ॉस्पिटल, नई दिल्ली
डॉ. राजीव अग्रवाल, इंचार्ज, न्यूरोफिजियोथेरपी यूनिट, एम्स
डॉ. शुचींद्र सचदेव, होम्योपैथी एक्सपर्ट
डॉ. एल. के. त्रिपाठी, आयुर्वेद एक्सपर्ट
सुरक्षित गोस्वामी, योगाचार्य

क्या है ऑस्टियोपोरोसिस
अगर किसी शख्स की हड्डियां कमजोर हो जाएं तो उसे ऑस्टियोपोरोसिस कहा जाता है। इसमें हड्डियों का बोन मास कम हो जाता है और वे भुरभुरी हो जाती हैं। इस बीमारी में दर्द के अलावा हड्डियों के फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है। इसे साइलेंट डिजीज कहा जाता है। यह धीरे धीरे होता है, धीरे धीरे बढ़ता जाता है और फिर इसका इलाज मुश्किल हो जाता है। ऐसे में इसे आगे बढ़ने से रोकना जरूरी है। पहले इसे बुढ़ापे की बीमारी माना जाता था लेकिन अब बदलते लाइफस्टाइल में फिजिकल एक्टिविटी कम होने की वजह से कम उम्र में भी लोगों को यह समस्या झेलनी पड़ रही है।

ऑस्टियोपोरोसिस और ऑर्थराइटिस में फर्क 
 ऑस्टियोपोरोसिस हड्ड‌ियों के कमजोर होने से होता है, जबकि ऑस्टोऑर्थराइिटस जोड़ों के कार्टिलेज घिसने से। हमारी बॉडी के सभी जोड़ों पर एक तरह का कवर चढ़ा होता है, जिसे कार्टिलेज कहा जाता है। जब वह डैमेज होता है तो नर्व्स का अंतिम हिस्सा एक्सपोज्ड हो जाता है। वजन पड़ने से उनमें दर्द होता है। हमारे देश में घुटने का ऑर्थराइिटस ज्यादा होता है, जबकि यूरोपीय देशों में हिप्स का, जिसे ऑस्टियोपोरोसिस होता है, उसे ऑर्थराइिटस होने का डर ज्यादा होता है।

किस उम्र में होता है ऑस्टियोपोरोसिस
महिलाओं में 45-50 साल के आसपास और पुरुषों में 55 साल के आसपास इस समस्या का खतरा बढ़ जाता है। महिलाओं में एस्ट्रोजन की कमी से मीनोपॉज के बाद यह समस्या ज्यादा देखने को मिलती है। यह हॉर्मोन महिलाओं को हड्डियों के साथ-साथ दिल की समस्या से भी बचाता है। सामान्य स्थिति में हमारी हड्ड‌ियां करीब 40-45 साल तक मजबूत होती रहती हैं और इस दौरान पीक बोन मास बनाती हैं। हालांकि कई बार पीरियड्स जल्दी खत्म होने या किसी और समस्या (हॉर्मोन आदि) की वजह से हड्ड‌ियां जल्दी कमजोर होने लगती हैं।

वजहें
- जिनेटिक फैक्टर
- प्रोटीन और कैल्शियम की कमी
- फिजिकली ज्यादा एक्टिव न होना
- बढ़ती उम्र
- छोटे बच्चों का बहुत ज्यादा सॉफ्ट डिंक्स पीना
- स्मोकिंग
- डायबीटीज, थायरॉइड जैसी बीमारियां
- दवाएं (दौरे की दवाएं, स्टेरॉयड आदि)
- विटामिन डी की कमी
- महिलाओं में जल्दी पीरियड्स खत्म होना

पहचानें कैसे
अगर बहुत जल्दी थक जाते हों, शरीर में बार-बार दर्द होता हो, खासकर सुबह के वक्त कमर में फैला हुआ दर्द हो। समस्या बढ़ने पर छोटी-सी चोट फ्रैक्चर की वजह हो सकती है। इनमें स्पाइन का फ्रैक्चर सबसे कॉमन है। 40-45 साल की उम्र के बाद फ्रैक्चर होने पर फ्रैक्चर के इलाज के साथ-साथ ऑस्टियोपोरोसिस की भी जांच करा लेनी चाहिए।

कैल्शियम और विटामिन डी का रोल
शरीर में हड्डियों के अलावा दिल को भी सही ढंग से काम करने के लिए कैल्शियम की जरूरत होती है। शरीर ढंग से कैल्शियम अब्जॉर्ब करे, इसके लिए विटामिन डी जरूरी है। इसलिए जितना जरूरी कैल्शियम खाना है, उतना ही जरूरी उसका शरीर में अब्जॉर्ब होना है, वरना उसे खाने का कोई फायदा नहीं। विटामिन डी पाने के लिए रोजाना शरीर के 20-25 फीसदी हिस्से को ढके बिना 15-20 मिनट धूप में बैठना चाहिए। धूप में मौजूद अल्ट्रावॉयलेट किरणें हमारे शरीर में मौजूद इनएक्टिव विटामिन डी को एक्टिव फार्म में बदलती हैं। इसके लिए सुबह 11 बजे से दोपहर 2 बजे तक का वक्त सबसे अच्छा है। हालांकि कुछ एक्सपर्ट सूर्योदय और सूर्यास्त का वक्त इसके लिए बेहतर मानते हैं। इस बारे में अभी फाइनल कोई राय नहीं बन पाई है। अगर धूप में नहीं बैठ पाते हैं तो सप्लिमेंट के रूप में विटामिन डी लेना चाहिए। हमारे देश में 96 फीसदी महिलाओं और 92 फीसदी पुरुषों में विटामिन डी की कमी है। शरीर में विटामिन डी का लेवल 70 से ऊपर होना चाहिए।

अगर शरीर में विटामिन डी का लेवल मेनटेन करना है तो रोजाना 800 ईयू दे सकते हैं, लेकिन अगर विटामिन डी की कमी हो गई है तो डॉक्टर की सलाह से शुरुआत में हफ्ते में दो बार 60,000 ईयू विटामिन डी दो हफ्ते के लिए लें। यह सैशे और टैब्लेट, दोनों तरह से मिलता है। इसके बाद महीने में 2 बार लें, छह महीने के लिए। वैसे कुल 6 हफ्ते तक सैशे या टैब्लेट खाना काफी होता है। विटामिन डी की मात्रा शरीर में ज्यादा भी नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह टॉक्सिक है और ज्यादा होने से शरीर और जोड़ों में दर्द होने लगता है।

पहचानें कैसे 
मॉर्निंग सिकनेस हो, शरीर में दर्द हो, मसल्स में दर्द हो तो विटामिन डी का टेस्ट करा लें।

कैल्शियम कहां से और कितना जरूरी?
कैल्शियम हड्डियों के साथ दिल और नर्व्स के कामकाज के लिए भी जरूरी है। बढ़ते बच्चों को रोजाना 1 से 1.2 ग्राम, अडल्ट को 1 ग्राम और दूध पिलाने वाली व प्रेग्नेंट महिलाओं को 1.5 ग्राम कैल्शियम की जरूरत होती है। बच्चों को रोजाना कम-से-कम एक गिलास दूध पीना जरूरी है। दूध और दूध से बनी चीजों (दही, पनीर, खोया आदि) के अलावा हरी सब्जियों (पालक, बीन्स, ब्रोकली, चुकंदर, कमलककड़ी आदि), फल (केला, संतरा, शहतूत, सिंघाड़ा, मखाना आदि), ड्राई-फ्रूट्स (खजूर, अंजीर, अखरोट आदि) और अंडे में काफी कैल्शियम होता है। ज्यादा कैल्शियम से हमें कोई नुकसान नहीं होता। अगर शरीर को ज्यादा कैल्शियम मिल रहा है तो वह पेशाब और मल के जरिए बाहर निकल जाता है। हालांकि कभी-कभी किडनी के कुछ खास तरह के स्टोन्स (पथरी) के बनने की वजह कैल्शियम होता है लेकिन ऐसा बहुत ही कम होता है।

अलग से कैल्शियम कब से
प्रेग्नेंट और दूध पिलानेवाली महिलाओं को डॉक्टर अलग से कैल्शियम लेने की सलाह देते हैं। जहां तक आम महिलाओं की बात है तो अगर आप एक्टिव लाइफ जी रही हैं, एक्सरसाइज आदि करती हैं और न्यूट्रिशन से भरपूर खाना खाती हैं तो 45 साल की उम्र के बाद ही ऊपर से कैल्शियम लेना चाहिए। तब महिलाएं 1 ग्राम कैल्शियम कार्बोनेट (ऑस्टयोकैल, जेमकैल, शेलकेल आदि) ले सकती हैं। पुरुष अगर नियमित तौर पर एक्सरसाइज करें तो उन्हें आमतौर पर ऊपर से कैल्शियम की जरूरत 55 साल के बाद ही पड़ती है।

कौन-से टेस्ट और किस उम्र में
अगर रिस्क फैक्टर हैं तो 40 साल की उम्र में ऑस्टियोपोरोसिस की जांच के लिए बोन डेंसिटी टेस्ट करा लेना चाहिए। इसे डेक्सास्कैन कहते हैं। रिस्क फैक्टर नहीं हैं तो दर्द आदि की समस्या होने पर ही टेस्ट कराना चाहिए। सामान्य लोगों को टेस्ट की जरूरत नहीं होती। हालांकि बोन डैंसिटी कम हो तो जरूरी नहीं कि ऑर्थराइटिस हो ही। मरीज की शिकायत, समस्या, डॉक्टर की जांच और टेस्ट मिलकर ही बताते हैं कि मरीज को ऑस्टियोपोरोसिस है या कोई और समस्या।

कीमत 
2000 से 3000 रुपये।

नोट 
कई बार कैल्शियम और विटामिन डी की जांच के लिए डिस्काउंट ऑफर भी दिए जाते हैं। इनमें आमतौर पर एड़ी से टेस्ट किया जाता है, जो मान्य नहीं है।

इलाज
ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज में मेडिकल मैनेजमेंट और नॉन मेडिकल मैनेजमेंट, दोनों जरूरी होता है। मेडिकल मैनेजमेंट के तहत दवाएं, इंजेक्शन और सर्जरी शामिल हैं, जबकि नॉन मेडिकल मैनेजमेंट में हड्डियों को मजबूत बनाने वाली एक्सरसाइज और प्रोटीन व कैल्शियम से भरपूर डाइट पर फोकस किया जाता है।

डाइट 
प्रोटीन और कैल्शियम से भरपूर डाइट लें। प्रोटीन के लिए फिश, सोयाबीन, स्प्राउट्स, दालें, मक्का और बीन्स आदि को खाने में शामिल करें, जबकि कैल्शियम के लिए दूध और दूध से बनी चीजें जैसे कि पनीर, दही आदि खाएं।

दवाएं 
ओरल और इंटरवीनल दवाएं दी जाती हैं। आमतौर पर विटामिन डी के सैशे या टैब्लेट 6 हफ्ते दी जाती हैं। इसके अलावा अलेंड्रोनेट (alendronate 70 mg) हफ्ते में एक बार दी जाती है। यह मार्केट में ओस्टियोफोस (Osteophos), फोसावैन्स (fosavance) आदि नाम से मिलती है। महीने में एक दिन Nअबैंड्रोनेट (Ibandronate) दी जाती है। यह मार्केट में आइड्रोफोस (Idrofos) नाम से मिलती है। जरूरत पड़ने पर इंजेक्शन भी दिए जाते हैं।

सर्जरी 
दर्द बहुत ज्यादा हो और मरीज को आराम नहीं हो रहा हो तो कभी-कभी सर्जरी भी करनी पड़ती है। इसमें इंजेक्शन से हड्ड‌ी में सीमेंट डाला जाता है। इसके लिए 70-80 हजार रुपये का खर्च आता है। दूसरे बैलून से सीमेंट के लिए जगह बनाई जाती है। इसे काइफोप्लास्टी कहा जाता है। इस पर डेढ़ लाख रुपये तक का खर्च आता है। कई बार हड्ड‌ी को फिक्स करने के लिए भी सर्जरी की जाती है। इसके अलावा अगर मरीज को फ्रैक्चर हो गया है तो उसके लिए भी सर्जरी की जाती है।

कौन-सी एक्सरसाइज करें
ऑस्टियोपोरोसिस से बचने और इसके इलाज, दोनों में एक्सरसाइज बहुत जरूरी है। एक्सरसाइज को दो हिस्सों में बांट सकते हैं :

बचाव के लिए 
ऑस्टियोपोरोसिस से बचने के लिए फिजिकल एक्टिविटी सबसे जरूरी है। जिस एरिया पर बार-बार स्ट्रेस पड़ेगा, वहां कैल्शियम और मिनरल ज्यादा बनेंगे, जिससे हड्ड‌ियां मजबूत होंगी।

- इसके लिए जंपिंग (कूद), स्किपिंग (रस्सीकूद) और जॉगिंग बहुत जरूरी है।

- वॉकिंग एक बेहतरीन एक्सरासइज है, इसलिए हफ्ते में 6 दिन 45 मिनट के लिए ब्रिस्क वॉक जरूर करें।

बीमारी हो जाने पर 
ऑस्टियोपोरोसिस होने पर जंपिंग और स्किपिंग जैसी एक्सरसाइज करना मुमकिन नहीं हो पाता। ऐसे में वॉक, एरोबिक्स, डांस, साइक्लिंग के साथ-साथ स्ट्रेचिंग भी करें।

नोट : बहुत ज्यादा एक्सरसाइज करनेवाले एथलीट आदि की बोन डेंसिटी कम होने का खतरा होता है, इसलिए इन्हें डाइट पर खास तौर पर ध्यान देना होता है।

योग खास फायदेमंद
योग का मुख्य मकसद यही है कि हड्ड‌ियां और मांसपेशियां ज्यादा-से-ज्यादा से मजबूत हों, हॉर्मोन बैलेंस में रहें और कैल्शियम शरीर में ज्यादा-से-ज्यादा अब्जॉर्ब हो। महिलाओं को खासतौर पर 30-35 साल की उम्र में नीचे लिखे योगासन शुरू कर देने चाहिए। ये योगासन ऑस्टियोपोरोसिस की रोकथाम के साथ-साथ इस बीमारी से निपटने में भी मददगार हैं।

- ताड़ासन, अर्धचक्रासन, एकपादउत्तानासन, कटिचक्रासन, सेतुबंध, पवनमुक्तासन (बिना सिर उठाए), भुजंगासन, अर्धशलभासन, अर्धनौकासन और हाथों व पैरों की सूक्ष्म क्रियाएं करें। इसके अलावा अनुलोम-विलोम, भस्त्रिका और कपालभाति प्राणायाम करें।

- मालिश करें और धूप सेकें।
नोट : ऑस्टियोपोरोसिस होने पर आगे झुकने और गिरने से बचें।

आयुर्वेद 
आयुर्वेद में भी खाने पर खास जोर दिया जाता है। साथ में नीचे दी गई दवाएं भी इस्तेमाल कर सकते हैं :

प्रवालपिष्टि (250 ग्राम) और मोतीपिष्टि (125 ग्राम) रोजाना दो बार खाएं। इन दवाओं का इस्तेमाल समस्या होने पर 6 महीने तक करें। अगर समस्या नहीं हो तो भी बचाव के तौर पर 35 साल की उम्र के बाद साल में एक-दो महीने खा सकते हैं। इससे कैल्शियम की कमी दूर होती है और हड्ड‌ियां मजबूत होती हैं।

- इसके अलावा अश्वगंधा, मेदालकड़ी, हरजोड़ी और मधुयष्टि चूर्ण बराबर (250 ग्राम) मात्रा में मिला लें और रोजाना दूध या पानी के साथ सुबह-शाम एक चम्मच खाएं।

- तेल से मालिश और स्टीम बाथ भी फायदेमंद हैं।

होम्योपैथी 
होम्योपैथी में लक्षण देखकर इलाज किया जाता है। इसमें हड्ड‌ियों की कैल्शियम सोखने की क्षमता बढ़ाने और कैल्शियम की कमी दूर करने के लिए दवाएं दी जाती हैं। इसके लिए कैल्केरिया फॉस 30 (Calcaria Phos 30), कैल्केरिया कार्ब 30 (Calcaria Carb 30), नैट्रम मुर (Natrum Mur 30) या लायकोपोडियम 30 (Lycopodium 30) आदि दवाएं दी जाती हैं।
साभार
प्रियंका सिंह 
नवभारत टाइम्स | Oct 21, 2013, 08.48PM IST
http://navbharattimes.indiatimes.com/thoughts-platform/sunday-nbt/just-life/osteoporosis-is-damaging/articleshow/24496804.cms

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