इन दिनों बुखार का सीजन है। कभी मौसमी
बदलाव से तो कभी मच्छरों के काटने से बुखार के मामले खूब सामने आ रहे हैं। बुखार में
कोई भी गोली खाने की बजाय बुखार की पहचान कर सही इलाज हो तो किसी भी बुखार से आसानी
से निपटा जा सकता है। एक बुखार दूसरे से कैसे अलग है और किसका सही इलाज क्या है, एक्सपर्ट्स से
बात करके बता रही हैं प्रियंका सिंह:
क्या है बुखार
जब हमारे शरीर पर कोई बैक्टीरिया
या वायरस हमला करता है तो शरीर खुद ही उसे मारने की कोशिश करता है। इसी मकसद से शरीर
जब अपना तापमान ( सामान्य 98.3 डिग्री फॉरनहाइट से ज्यादा ) बढ़ाता है तो उसे बुखार कहा जाता
है। हालांकि कई बार बुखार थकान या मौसम बदलने आदि की वजह से होता है। ऐसे में 100 डिग्री
तक बुखार में किसी दवा आदि की जरूरत नहीं होती। लेकिन बुखार इसी रेंज में 4-5 या ज्यादा
दिन तक लगातार बना रहे या ज्यादा हो जाए तो इलाज की जरूरत होती है। कई बार बुखार 104-105 डिग्री
फॉरनहाइट तक भी पहुंच जाता है।
कब जाएं डॉक्टर के पास
बुखार अगर 102 डिग्री
तक है और डेंगू के लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं तो दो दिन तक इंतजार कर सकते हैं। लेकिन
बुखार 102 डिग्री से ज्यादा हो जाए , उलटी , दस्त , सिर , आंखों , बदन या जोड़ों में दर्द जैसे लक्षणों में
से कोई भी लक्षण हो , तो फौरन डॉक्टर के पास जाएं।
खुद क्या करें
- बुखार अगर 102 डिग्री तक है और कोई और खतरनाक लक्षण नहीं हैं तो मरीज की देखभाल
घर पर ही कर सकते हैं। मरीज के शरीर पर सामान्य पानी की पट्टियां रखें। पट्टियां तब
तक रखें , जब तक शरीर का तापमान कम न हो जाए। पट्टी रखने के बाद वह गरम
हो जाती है इसलिए उसे सिर्फ 1 मिनट तक ही रखें। अगर माथे के साथ - साथ शरीर भी गरम है तो
नॉर्मल पानी में कपड़ा भिगोकर निचोड़ें और उससे पूरे शरीर को पोंछें।
- मरीज को हर छह घंटे में पैरासिटामॉल (Paracetamol) की एक गोली दे सकते हैं। यह मार्केट में क्रोसिन (Crocin), कालपोल (Calpol)
आदि ब्रैंड नेम से मिलती है। दूसरी कोई गोली
डॉक्टर से पूछे बिना न दें। बच्चों को हर चार घंटे में 10 मिली प्रति किलो
वजन के अनुसार दवा दे सकते हैं। दो दिन तक बुखार ठीक न हो तो मरीज को डॉक्टर के पास
जरूर ले जाएं।
- साफ - सफाई का पूरा ख्याल रखें। मरीज को वायरल है , तो उससे थोड़ी
दूरी बनाए रखें और उसके द्वारा इस्तेमाल की गई चीजें इस्तेमाल न करें।
- मरीज को पूरा आराम करने दें , खासकर तेज बुखार में। आराम भी बुखार में
इलाज का काम करता है।
- मरीज छींकने से पहले नाक और मुंह पर रुमाल रखें। इससे वायरल
होने पर दूसरों में फैलेगा नहीं।
बुखार कब जानलेवा
सभी बुखार जानलेवा या बहुत खतरनाक
नहीं होते , लेकिन अगर डेंगू में हैमरेजिक बुखार या डेंगू शॉक सिंड्रोम हो
जाए , मलेरिया दिमाग को चढ़ जाए , टायफायड का सही इलाज न हो , प्रेग्नेंसी में
वायरल हेपटाइटिस ( पीलिया वाला बुखार ) या मेंनिंजाइटिस हो जाए तो खतरनाक साबित हो
सकते हैं।
बुखार कैसे - कैसे
वायरल / फ्लू
किसी भी वायरस से होने वाला बुखार
वायरल कहलाता है।
कैसे फैलता है
आमतौर पर इन्फेक्शन वाले शख्स और
उसके कॉन्टैक्ट में आई चीजों जैसे फोन , हैंडल , टॉवल आदि छूने या इस्तेमाल करने से फैलता
है।
कितने दिन रहता है
3 से 5 दिनों तक।
लक्षण
खांसी , नाक बहना या नाक
बंद होना , सिर दर्द ,
जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द , थकावट , गला खराब , आंखों का लाल
होना आदि।
टेस्ट
95 फीसदी मामलों में किसी टेस्ट की जरूरत नहीं होती। सीबीसी यानी
कंप्लीट ब्लड काउंट। बुखार कम / खत्म नहीं होता तो डॉक्टर इस टेस्ट की मदद से जांचते
हैं कि ब्लड में कोई इन्फेक्शन तो नहीं है। सीबीसी कम होंगे तो वायरल होगा और बढ़े
हुए होंगे तो बैक्टीरियल फीवर होगा। सीबीसी से स्थिति साफ न हो या किसी खास वायरस का
खतरा नजर आता है तो डॉक्टर वायरल एंटिजन टेस्ट (वीएटी) या पॉलीमरेज चेन रिएक्शन टेस्ट
(पीसीआर) कराने की सलाह देते हैं।
इलाज
तापमान 102 डिग्री
तक रहता है तो हर 6 घंटे में पैरासिटामोल की 1 गोली मरीज को दे सकते हैं। बच्चों को हर
चार घंटे में दवा दे सकते हैं। बच्चों को 10 मिली प्रति किलो वजन के अनुसार पैरासिटामोल
सिरप दे सकते हैं। दो - तीन दिन तक बुखार ठीक न हो तो डॉक्टर के पास जाएं।
टायफायड
इसे एंट्रिक फीवर और मियादी बुखार
भी कहते हैं। यह सैल्मोनेला बैक्टीरिया से होता है , जिससे आंत में जख्म ( अल्सर ) हो जाता है
, जो बुखार की वजह बनता है। यह बुखार आमतौर पर धीरे - धीरे करके
बढ़ता है। पहले दिन कम , फिर थोड़ा तेज और धीरे - धीरे बढ़ता जाता है।
कैसे फैलता है
टायफायड खराब पानी से फैलता है। टायफायड
वैक्सीन लगी होने के बावजूद यह बुखार हो सकता है , क्योंकि यह वैक्सीन 65 फीसदी ही सुरक्षा
देती है।
कितने दिन रहता है
3-4 हफ्ते ( अगर इलाज न हो तो यह लंबा खिंच जाता है )
लक्षण
तेज बुखार , सिर दर्द , बदन दर्द , कमजोरी , उलटी , जी मितलाना , दस्त , कभी - कभी शौच
में खून।
टेस्ट
ब्लड कल्चर। कभी - कभी विडाल और टायफिडॉट
टेस्ट भी कराते हैं।
इलाज
इसमें एंटी - बायोटिक दवा आमतौर पर
दो हफ्ते के लिए दी जाती है। कई बार दवा देने के बाद भी बुखार उतरने में 4-5 दिन लग
सकते हैं , इसलिए परेशान न हों। हाथ बिल्कुल साफ रखें और पानी साफ और उबालकर
पिएं।
मलेरिया
यह ' प्लाज्मोडियम
' नाम के पैरासाइट से होता है , जो मच्छर इंसानों में फैलाते हैं। माना जाता
है कि मलेरिया में एक दिन छोड़कर बुखार आता है , लेकिन अब धीरे - धीरे बदलाव देखने में आ
रहा है और कई मामलों में बुखार लगातार भी बना रहता है।
कैसे फैलता है
मलेरिया मादा ' एनोफिलीज ' मच्छर के काटने
से होता है , जोकि गंदे पानी में पनपते हैं। ये मच्छर आमतौर पर दिन ढलने के
बाद काटते हैं।
कब तक रहता है
1-2 हफ्ते ( इलाज के बिना यह लंबा खिंच जाता है )
लक्षण
रह - रहकर ( कभी - कभी लगातार भी
) ठंड के साथ तेज बुखार , सिर दर्द ,
कंपकंपी महसूस होना , शरीर दर्द , उलटी , जी मितलाना , कमजोरी आदि। कभी
- कभी मरीज बेहोश भी हो जाता है।
टेस्ट
ब्लड स्मेयर टेस्ट और मलेरिया एंटीजन।
ब्लड स्मेयर टेस्ट चढ़े बुखार में किया जाता है।
इलाज
इसमें क्लोरोक्विन जैसी एंटी - मलेरियल
दवा दी जाती है। इन दवाओं के साइड - इफेक्ट्स हो सकते हैं , इसलिए इन्हें
डॉक्टर की सलाह के बिना न लें।
डेंगू
डेंगू 3 तरह का होता
है : 1. क्लासिकल ( साधारण ) डेंगू बुखार , 2. डेंगू
हैमरेजिक बुखार (DHF), 3. डेंगू शॉक सिंड्रोम (DSS)
कैसे फैलता है
डेंगू मादा एडीज इजिप्टी मच्छर के
काटने से होता है। इन मच्छरों के शरीर पर चीते जैसी धारियां होती हैं और ये बहुत ऊंचाई
तक नहीं उड़ पाते। ये मच्छर दिन में ,
खासकर सुबह काटते हैं।
कितने दिन तक रहता है
5 से 10 दिन तक
लक्षण
ठंड लगने के बाद अचानक तेज बुखार
चढ़ना , तेज सिरदर्द ,
आंखों के पीछे दर्द , कमजोरी , उलटी , पेट दर्द , चक्कर आना। डेंगू
हैमरेजिक बुखार में इन लक्षणों के साथ नाक और मसूढ़ों से खून आना , शौच या उलटी में
खून आना या स्किन पर गहरे नीले - काले रंग के चिकत्ते जैसे लक्षण हो सकते हैं। डेंगू
शॉक सिंड्रोम में इन लक्षणों के साथ - साथ कुछ और लक्षण भी दिखते हैं जैसे कि मरीज
धीरे - धीरे होश खोने लगता है , उसका बीपी एकदम कम हो जाता है और तेज बुखार के बावजूद स्किन
ठंडी लगती है।
टेस्ट
- एंटीजन ब्लड टेस्ट ( एनएस 1) और डेंगू सिरॉलजी। एनएस 1 पहले दिन ही
पॉजिटिव आ जाता है लेकिन धीरे - धीरे पॉजिविटी कम होने लगती है। इसलिए बुखार होने के
4-5 दिन बाद टेस्ट कराते हैं तो एंटीबॉडी टेस्ट ( डेंगू सिरॉलजी
) कराना बेहतर है।
इलाज
- साधारण डेंगू बुखार का इलाज घर पर ही हो सकता है। मरीज को पूरा
आराम करने दें। आराम दवा का काम करता है। उसे हर छह घंटे में पैरासिटामोल दें और बार
- बार खूब सारा पानी और तरल चीजें ( नीबू पानी , छाछ , नारियल पानी आदि ) पिलाएं , ताकि ब्लड गाढ़ा
न हो और जमे नहीं।
- मरीज में अगर जटिल तरह के डेंगू यानी DSS या DHF का एक
भी लक्षण दिखाई दे तो उसे जल्दी - से - जल्दी डॉक्टर के पास ले जाएं। DHF और DSS बुखार
में प्लेटलेट्स कम हो जाते हैं , जिससे शरीर के जरूरी अंगों पर बुरा असर पड़ सकता है। डेंगू से
कई बार मल्टि - ऑर्गन फेल्योर भी हो जाता है।
जरूर ध्यान रखें
- बुखार है ( खासकर डेंगू के सीजन में ) तो एस्प्रिन ( Aspirin ) बिल्कुल न लें। यह माकेर्ट में डिस्प्रिन ( Dispirin ), एस्प्रिन ( Aspirin
), इकोस्प्रिन ( Ecosprin ) आदि ब्रैंड नेम से मिलती है। ब्रूफेन ( Brufen ), कॉम्बिफ्लेम ( Combiflame ) आदि एनॉलजेसिक से भी परहेज करें क्योंकि
अगर डेंगू है तो इन दवाओं से प्लेटलेट्स कम हो सकती हैं और शरीर से ब्लीडिंग शुरू हो
सकती है। किसी भी तरह के बुखार में सबसे सेफ पैरासिटामोल लेना है।
- झोलाछाप डॉक्टरों के पास न जाएं। अक्सर ऐसे डॉक्टर बिना सोचे
- समझे कोई भी दवाई दे देते हैं। डेक्सामेथासोन ( Dexamethasone ) इंजेक्शन और टैब्लेट
तो बिल्कुल न लें। अक्सर झोलाछाप डॉक्टर मरीजों को इसका इंजेक्शन और टैब्लेट दे देते
हैं , जिससे मौत भी हो सकती है।
- डेंगू बुखार के हर मरीज को प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत नहीं
होती। आमतौर पर किसी सेहतमंद शख्स के शरीर में डेढ़ से दो लाख प्लेटलेट्स होते हैं।
प्लेटलेट्स बॉडी की ब्लीडिंग रोकने का काम करती हैं। प्लेटलेट्स अगर एक लाख से कम हैं
तो मरीज को फौरन हॉस्पिटल में भर्ती कराना चाहिए। डेंगू में 24 घंटे में 50 हजार से एक लाख
तक प्लेटलेट्स तक गिर सकते हैं। अगर प्लेटलेट्स गिरकर 20 हजार या उससे
नीचे पहुंच जाएं तो प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। 40-50 हजार
प्लेटलेट्स तक ब्लीडिंग नहीं होती। ब्लीडिंग शुरू हो जाए तो प्लेटलेट्स चढ़वाने में
देरी न करें।
- डेंगू में कई बार चौथे - पांचवें दिन बुखार कम होता है तो लगता
है कि मरीज ठीक हो रहा है , जबकि ऐसे में कई बार प्लेटलेट्स गिरने लगते हैं। बुखार कम होने
के बाद भी एक - दो दिन में एक बार प्लेटलेट्स काउंट टेस्ट जरूर कराएं। डेंगू में मरीज
के ब्लड प्रेशर , खासकर ऊपर और नीचे के बीपी के फर्क पर लगातार निगाह ( दिन में
3-4 बार ) रखना जरूरी है। दोनों बीपी के बीच का फर्क 20 डिग्री या उससे
कम हो जाए तो स्थिति खतरनाक हो सकती है। बीपी गिरने से मरीज बेहोश हो सकता है।
बच्चों का रखें खास ख्याल
- बच्चे नाजुक होते हैं और उनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है इसलिए
बीमारी उन्हें जल्दी जकड़ लेती है। ऐसे में उनकी बीमारी को नजरअंदाज न करें।
- बच्चे खुले में ज्यादा रहते हैं इसलिए इन्फेक्शन होने और मच्छरों
से काटे जाने का खतरा उनमें ज्यादा होता है।
- बच्चों घर से बाहर पूरे कपड़े पहनाकर भेजें। मच्छरों के मौसम
में बच्चों को निकर व टी - शर्ट न पहनाएं। रात में मच्छर भगाने की क्रीम लगाएं।
- अगर बच्चा बहुत ज्यादा रो रहा हो , लगातार सोए जा
रहा हो , बेचैन हो ,
उसे तेज बुखार हो , शरीर पर रैशेज
हों , उलटी हो या इनमें से कोई भी लक्षण हो तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं।
- आमतौर पर छोटे बच्चों को बुखार होने पर उनके हाथ - पांव तो ठंडे
रहते हैं लेकिन माथा और पेट गर्म रहते हैं इसलिए उनके पेट को छूकर और रेक्टल टेम्प्रेचर
लेकर उनका बुखार चेक किया जाता है। बगल से तापमान लेना सही तरीका नहीं है , खासकर बच्चों
में। अगर बगल से तापमान लेना ही है तो जो रीडिंग आए , उसमें 1 डिग्री जोड़
दें। उसे ही सही रीडिंग माना जाएगा।
- बच्चे को डेंगू हो तो उसे अस्पताल में रखकर ही इलाज कराना चाहिए
क्योंकि बच्चों में प्लेटलेट्स जल्दी गिरते हैं और उनमें डीहाइड्रेशन ( पानी की कमी
) भी जल्दी होता है।
किस डॉक्टर को दिखाएं
किसी भी बुखार के लिए किसी अच्छे
फिजिशन या इंटरनल मेडिसिन के एक्सपर्ट के पास जाना चाहिए। बच्चों को पीडिअट्रिशन (
बच्चों का डॉक्टर ) के पास ले जाएं।
क्या खाएं , क्या नहीं
- बुखार में मरीज का खाना बंद न करें। मरीज को लगातार पानी , तरल चीजें और
सामान्य रूप से खाना देना जारी रखें। बुखार की हालत में शरीर को अच्छे और सेहतमंद खाने
की जरूरत होती है।
- खाना ताजा और आसानी से पचने वाला हो। तेज बुखार से प्रोटीन को
नुकसान होता है , इसलिए मरीज के खाने में प्रोटीन ( दालें , राजमा , दूध , अंडा , पनीर , मछली आदि ) जरूर
हों , खासकर बच्चों के खाने में।
- मरीज को मौसमी फल और हरी सब्जियां खूब खिलाएं। विटामिन - सी
से भरपूर चीजों ( आंवला , संतरा , मौसमी , टमाटर आदि ) लें। ये हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं।
- खाने में हल्दी का इस्तेमाल ज्यादा करें। सुबह आधा चम्मच हल्दी
पानी के साथ या रात को आधा चम्मच हल्दी एक गिलास दूध या पानी के साथ लें। लेकिन अगर
आपको नजला , जुकाम या कफ आदि है तो दूध न लें। तब आप हल्दी को पानी के साथ
ले सकते हैं।
- बहुत ठंडा और बासी खाना न खाएं। बेहद तीखे , तले - भुने और
गरिष्ठ खाने से भी परहेज करें।
बुखार में कॉमन गलतियां
1. कई बार लोग खुद और कभी - कभी डॉक्टर भी बुखार में फौरन एंटी
- बायोटिक देने लगते हैं। सच यह है कि टायफायड के अलावा आमतौर पर किसी और बुखार में
एंटी - बायोटिक की जरूरत नहीं होती।
2. ज्यादा एंटी - बायोटिक लेने से शरीर इसके प्रति इम्यून हो जाता
है। ऐसे में जब टायफायड आदि होने पर वाकई एंटी - बायोटिक की जरूरत होगी तो वह शरीर
पर काम नहीं करेगी। एंटी - बायोटिक के साइड इफेक्ट भी होते हैं। इससे शरीर के गुड बैक्टीरिया
मारे जाते हैं।
3. डेंगू में अक्सर तीमारदार या डॉक्टर प्लेटलेट्स चढ़ाने की जल्दी
करने लगते हैं। यह सही नहीं है। इससे उलटे रिकवरी में वक्त लग जाता है। जब तक प्लेटलेट्स
20 हजार या उससे कम न हों , प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत नहीं होती।
4. कई बार परिजन मरीज से खुद को चादर से ढकने कर रखने को कहते हैं
, ताकि पसीना आकर बुखार उतर जाए। इससे बुखार फौरी तौर पर उतर भी
जाता है लेकिन सही तापमान का अंदाजा नहीं हो पाता। इसकी बजाय उसे खुली और ताजा हवा
लगने दें। उसके शरीर पर सादा पानी की पट्टियां रखें। जरूरत है तो कूलर / एसी चलाएं
ताकि उसके शरीर का तापमान कम हो सके।
5. बुखार में मरीज या उसके परिजन पैनिक करने लगते हैं और आनन -
फानन में तमाम टेस्ट ( मलेरिया , डेंगू , टायफायड आदि के लिए ) कराने लगते हैं। दो दिन इंतजार करने के
बाद डॉक्टर के कहे मुताबिक टेस्ट कराना बेहतर है।
6. मरीज बुखार में कॉम्बिफ्लेम , ब्रूफेन आदि ले लेते हैं। अगर डेंगू बुखार
है तो इन दवाओं से प्लेटलेट्स कम हो सकते हैं , इसलिए ऐसा बिल्कुल न करें। सिर्फ पैरासिटामोल
( क्रोसिन आदि ) किसी भी बुखार में सेफ है।
7. मरीज आराम नहीं करता और पानी कम पीता है। तेज बुखार में आराम
जरूरी है। साथ ही , शरीर में पानी की कमी न हो तो उसे बीमारी से लड़ने में मदद मिलती
है।
मच्छरों से बचाव जरूरी
मच्छरों को पैदा होने से रोकना और
उन्हें काटने से रोकना , दोनों जरूरी हैं :
- अपने आसपास पानी जमा न होने दें , गड्ढों को मिट्टी
से भर दें , रुकी हुई नालियों को साफ करें।
- अगर कहीं पानी जमा है तो उसमें पेट्रोल या केरोसिन ऑयल डालें
ताकि मच्छर न पनपें।
- कूलरों , फूलदानों आदि का पानी हफ्ते में एक बार और पक्षियों को दाना
- पानी देने के बर्तन को रोज पूरी तरह से खाली करें , उसे साफ करें
और फिर भरें। घर में टूटे - फूटे डिब्बे , टायर , बर्तन , बोतलें आदि न रखें। अगर रखें तो उलटा करके
रखें ताकि उनमें बारिश आदि का पानी इकट्ठा न हो।
- डेंगू के मच्छर साफ पानी में पनपते हैं , इसलिए पानी की
टंकी को अच्छी तरह बंद करके रखें।
- अगर मुमकिन हो तो खिड़कियों और दरवाजों पर महीन जाली लगवाकर
मच्छरों को घर में आने से रोकें।
- मच्छरों को भगाने और मारने के लिए मच्छरनाशक स्प्रे , मैट्स , कॉइल्स आदि इस्तेमाल
करें। मैट्स या कॉइल जलाकर करीब आधे घंटे के लिए कमरा बंद कर दें। फिर सारी खिड़कियां
खोल दें। मच्छर मर जाएंगे या भाग जाएंगे। जब मॉसकिटो रैपलेंट जलाएं तो खिड़की खुली
रखें। गुग्गुल के धुएं से मच्छर भगाना अच्छा देसी उपाय है।
- घर के अंदर सभी जगहों में हफ्ते में एक बार मच्छरनाशक दवा का
छिड़काव जरूर करें। यह दवाई फोटो - फ्रेम्स , पर्दों , कैलेंडरों आदि के पीछे और घर के स्टोर -
रूम और सभी कोनों में जरूर छिड़कें। दवाई छिड़कते वक्त अपने मुंह और नाक पर कोई कपड़ा
जरूर बांधें। साथ ही , खाने - पीने की सभी चीजों को ढककर रखें।
- ऐसे कपड़े पहनें , जिनसे शरीर का ज्यादा - से - ज्यादा हिस्सा
ढका रहे।
- किसी को डेंगू या मलेरिया हो गया है तो उसे मच्छरदानी के अंदर
रखें , ताकि मच्छर उसे काटकर दूसरों में बीमारी न फैलाएं।
एक्सपर्ट्स पैनल
डॉ . अनूप मिश्रा , डायरेक्टर , फॉटिर्स सीडॉक
सेंटर फॉर इंटरनल मेडिसिन
डॉ . के . के . अग्रवाल , सीनियर फिजिशन
, मूलचंद हॉस्पिटल
डॉ . नितिन वर्मा , सीनियर कंसल्टेंट
, पीडियाट्रिक्स , मैक्स हॉस्पिटल
डॉ . सतीश कौल , कंसल्टेंट , इंटरनल मेडिसिन
, कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल
साभार
नवभारत टाइम्स | Oct 7, 2012, 11.18AM IST
http://navbharattimes.indiatimes.com/thoughts-platform/sunday-nbt/just-life/-/articleshow/16707851.cmsनवभारत टाइम्स | Oct 7, 2012, 11.18AM IST
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